अगर आप ने कल नार्थ ब्लाक से इंडिया गेट की बीच समय गुजर होता तो आप देख पाते कि मात्र 16 से 22 साल उम्र के (90% इसी उम्र के युवा दिखाई पड़े) छात्र छात्राएं- "We want justice, hang the rapist", "दिल्ली पुलिस एक काम काटो, चूड़ियाँ पहन के डांस करो", "रेप करने वालों का, काट डालो सालों का" इत्यादि नारे लगा रहे थे। ये युवा कभी रोष से भरे नारे लगा रहे थे, तो राष्ट्रीयता की भावना प्रदर्शित करते हुए राष्ट्रिय ध्वज फहरा रहे थे, तो भावुकता से भरे राष्ट्र गान गा रहे थे। टी वी कैमरों की स्थान पर खुद की निगाहों से देखने पे आन्दोलन को व्यक्यिगत तौर पर समझने का अवसर मिलाता है, जो बेहद अद्भुत था। मैंने अपने कैमरे में द्रश्यों को कैद भी किया।
आज फिर जब इन्ही बच्चों को पुलिस से झड़प करते देखा तो ख्याल आया कि जब बच्चा अपनी किसी वाजिब मांग को मातापिता के सम्मुख रखता है और मातापिता द्वारा उपेक्षा किये जाने पर हल्ला मचाता है, फिर यदि मातापिता द्वारा बिना वजह दण्डित होता है तो गुस्से में कभी कभी तोड़ फोड़ करके भी अपनी और ध्यान आकृषित करने का प्रयास करता है। क्या छात्रो के इस आन्दोलन में भी यही मनोविज्ञान नहीं दिखता। मेरी समझ यही कहती है कि सरकार को समझाना होगा ये गुस्से भरे युवा आश्वासन नहीं कार्यवाही चाहते है और यदि इस आंदोलन को सख्ती से दबाया गया तो इसके दूरगामी परिणाम राष्ट्रिय हित में नहीं होंगे।
इस परिस्तिथि में महिला तथा इस देश का नागरिक होने के नाते मेरी सरकार से आज यही अपेक्षा है- 1. पुलिस रिफोर्म हो। 2. विशेष संसद सत्र बुला के रेप केस में कड़े कानून बने, जिसमे फांसी तथा आजीवन कारावास का प्रावधान हो। इस अपराध में कोई बेल न मिले, न किसी पैरोल का प्रावधान हो। ये प्रावधान रेप के आलावा तेज़ाब फेंक कर लड़कियों को जिन्दा लाश बनाने वालों के विरुद्ध भी होना चाहिए।3. देश के सभी हिस्सों में रेप केस की सुनवाई हेतु फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बने तथा सुनवाई की समय सीमा तय हो। 4. कानुन तथा पुलिस का भय सिर्फ दिल्ली में नहीं बल्कि देश के दूर दराज क्षेत्रों में भी हो।
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