Saturday, August 18, 2007

सिर्फ तुम्हारे लिए

सिले सिले होटों से
कैसे कहूँ की मैं तुम्हे चाहती हूँ।
मुंदी मुंदी आंखों से
कैसे बोलूं
कि तुम कितने अच्छे हो।
बंधे बंधे हाथों से
तुम्हे कैसे बांधू
कि तुम वही हंसी ख्वाब हो,
जो मेरे सपनो मे
हर पूर्णिमा की रात
सफ़ेद घोड़े पर सवार
आकाश से उतरते हो।
रुके रुके पांवों से
तुम्हें कैसे रोकुं
क्यूंकि हवा की तरह
मेरे बगल से रोज बहते हो।
सिर्फ खुला है
मेरे ह्रदय का कपाट
झांक कर देखो
एक मंदिर सा बाना है अन्दर
तुम्हारे लिए.....
सिर्फ तुम्हारे लिए..........

8 comments:

Atul said...

Very nice poem mam..It really touches the heart..Its impossible to describe in words, the emotions which come out while readin it..
Seems u are a great poet..Keep up the writing work. Good luck to u..

Sanjeet Tripathi said...

बहुत बढ़िया चयनिका जी!!
राजनीति के दांव पेंच के बीच भी आपके नारी मन की कोमल भावनाएं अपना रंग दिखा ही जाती है , यह देख कर खुशी हुई।

शायद हिन्दी में ज्यादा लिखने का अभ्यास न होने के कारण वर्तनी की गलतियां दिख रही है, कोशिश करें कि सुधार लें क्योंकि मात्राओं की गलतियां पढ़नेवाले का मजा खराब कर देती है अक्सर!!

आशा है इस बिन मांगी सलाह का बुरा नही मानेंगी।

रंजू भाटिया said...

बहुत ख़ूब सरल लफ़्ज़ो में दिल की बात
दिल को छू गयी आपकी कविता ...

Urban Jungli said...

Very nice presentation.. and a nice poem too..

Good Work..

Regards..

Aman..

Unknown said...

didi apka profile bahut achha hai...............didi apke ke jeevan ke bare padkar bahut achha laga...................apne congress party ke liye bahut kaam kiya hai............main bhi aapke jitna karna chahta hoon...............apke jaisa banana chahta hoon..............

Anonymous said...

nice one

Vicky Ameria said...

nice mam....

aapki ye kavita ...dil ko choo lene wali hai ..

mere to dil ko choo gai hai ..

RameshGhildiyal"Dhad" said...

तुम चाहो चुप चाप लौट जाना बिलकुल खामोशी के साथ

तुम चाहो चुप चाप लौट जाना, बिलकुल खामोशी के साथ
पर ये याद रखना की खामोशी की भी आवाज होती है ...
कितना भी दूर जाओ तुम, धड़कने बिल्कुल पास होती हैं .
तुम शब्द बन कर मेरे होटों से लग जाना हमनशीं .
ये कौन शै है? जो शब्दों को सुरों की चासनी में भिगोती है ..


मोम - मोम तू होजा, फिर भी तेरा अस्तित्व बचा रहेगा ..
रूप का बाज़ार सजा, तो बस! ऐसा ही ये सजा रहेगा ..
गढ़ना- ढलना शब्दों में, औ नज्मो का तू रूप लिए
अंगारों से बोल दहकते, चेहरे पर भादों की धूप लिए
मेरे आँगन की गौरैया सी, दाना चुगने आजाना तुम
सावन के मेघों सा, उमड़ - घुमड़ बरसाना तुम ....sundar ati sundar.....