Friday, August 10, 2007
बेदाग चांद
पूर्णिमा की दहकती रात मे
कभी देखा है प्रिये
तुमने, वो बेदाग़ चांद.............
हो जैसे दुल्हन की कलाई मेँ
हीरों जाड़ा कंगन,
या फिर- बिरहन के माथे पर
कुमकुम की बिखरी बिंदिया,
या फिर मोम की गुड़ियों मे
पिघलता सोना,
या फिर रुपहली मौजों पर
थिरकते नव-नर्तकी के पांव,
या फिर महताब सा आईने मे उभरा
तुम्हारा अक्स,
कभी देखा है प्रिय
तुमने वो बेदाग चांद................
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4 comments:
पूर्णिमा के चांद में तो,
हमेशा होते हैं दाग
यह मैंने हर पुर्णिमा को देखा है
विश्वास न हो तो,
स्वयं देख लेना
अगली पूर्णिमा पर।
यहां तो किसी और पूर्णिमा की बात है
Poornima ki dahakti raat,
Wah! sheetalta aur dahkan ka kaisa hai sangam..
jaise lambe virah ke baad priytam se milne ka mann...
aise me milna priytam se...
Dikha dega kisi ko bhee wo bedaag chaand...
गज़ब!!
क्या बात है मिस चयनिका!!
God Work.. Keep Posting..
And one thing more.. I could not get a place to comment on the Quote written on the Header of your Blog.. Thats also Nice :)..
Regards..
Aman..
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