Wednesday, April 25, 2007

आशा


आज दिल फिर उदास है,
ना वो आया ना आने कि आस है.............

प्रेम ही परमेश्वर कि व्यवस्था का मूल है

धर्म परमेश्वर कि व्यवस्था है, जिसे उसने संपूर्ण प्राणी जगत के लिए जारी किया है। हालांकि इसे परमेश्वर द्वारा लिखित रूप से जारी नहीं किया गया है, किन्तु उसके द्वारा भेजे गए पैगम्बरों द्वारा समय समय पर इसे प्रकट अवश्य किया गया है। असल में कठिनाई यह कि जिन्हें हम धर्म कहते है वह धर्म नहीं, संप्रदाय है। कोई संप्रदाय परमेश्वर कि व्यवस्था (धर्म) नही है। यह पूर्णत: धरती कि व्यवस्था है तथा व्यवस्था बनाए रखने के लिए समय समय पर अवतरित महापुरशों द्वारा दिखाए गए रस्ते का एक हिस्सा है। हिंदु, मुस्लिम, सिख, जैन, इसाई, बौद्ध, फारसी, यहूदी एवं कम्युनिस्ट परमेश्वर द्वारा वर्गीकृत नही किये गए है। संप्रदाय, जाति एवं राष्ट्र धरती कि व्यवस्थाएं है तथा पुरी तरह परमेश्वर कि इच्छा के विरुद्ध मनुष्य द्वारा बनाईं गयी है। आज प्रत्येक व्यक्ति को एक साथ उक्त तीनो ही व्यवस्थाओं का पालन करना पङता है। इस आपा धापी मे वह ना चाहते हुये भी परमेश्वर कि व्यवस्था से दूर चला गया है। हमे धरती कि व्यवस्थाओं का सम्मान करना चाहिऐ, किन्तु परमेश्वर कि व्यवस्था 'प्रेम' का परित्याग करके नहीं। विश्वास, आशा व प्रेम तीनों ही स्थाई है, किन्तु इन में सबसे बड़ा प्रेम है। स्पष्ट है कि प्रेम के बिना विश्वास अधूरा है , ओर विश्वास के बिना आशा अधूरी है, ओर आशा नहीं वहां प्रेम संभव नहीं। अतएव यही अन्तिम सत्य है कि प्रेम ही परमेश्वर कि व्यवस्था का मूल है, जबकी धरती कि व्यवस्थाओं मे इसका आभाव है। यही ईश्वरीय व्यवस्था ओर धरती कि व्यवस्था का अंतर है।

प्रश्न उठाता हैकि क्या धर्म परिवर्तन संभव है? मेरी जानकारी मे संभव नही है, क्योंकि यह एक स्वर्गीय व्यवस्था है। इसे छोड़ा जा सकता है, इसका विरोध किया जा सकता है,इसकी गलत व्याख्या कि जा सकती है, किन्तुं इसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता। ह्रदय परिवर्तन सम्भव है, क्योंकि यह व्यवस्था मनुष्यों द्वारा निर्मित है। अतएव इसे अपनाने, मानाने व छोड़ने का अधिकार भी मनुष्य को है। प्रत्येक व्यक्ति अपने विकास व शांति के लिए व्यवस्था परिवर्तन का हकदार है। दबाव व प्रलोभन मे किया गया परिवर्तन स्थाई नही होता, ना ही यह नैतिक व उचित है। सुह्रादय परिवर्तन प्रत्येक व्यक्ति का नैतिक अधिकार है तथा इसका विरोध हर स्तर पर निंदनीय है।
विश्व मे स्थायी शांति के लिए जरुरी है कि हम सब मनुष्य द्वारा निर्मित व्यवस्थाओं को सामुहिक रूप से तिलांजलि दे कर - एक गड़रिया (परमेश्वर) एक झुंड (संपूर्ण मानव जाति) , एक मार्ग (प्रेम धर्म) , एवं एक मंजिल (शांति, मैत्री व सहयोग) के सिद्धांत पर चल पडे। धुर्व, प्रह्लाद, इब्राहीम,महावीर, बुध, ईसा, नानक, कबीर,कालामाक्स्र , अम्बेडकर ओर गाँधी का विश्वास धरती कि व्यवस्थाओं के लिए एक चुनौती है तथा संपूर्ण मानव जाति के लिए एक सीधा मार्ग है। आओ हम सीदा मार्ग चुने।

दैनिक नव ज्योति मे प्रकाशित

Tuesday, April 24, 2007

इन्सान


माँ कहती है-
बेटा दाढ़ी कटाव ले-
वरना लोग मार डालेंगे-
तुझे मुसलमान समझकर!!

बहन कहती है-
भाई दाढ़ी कटाव ले-
वरना लोग मार डालेंगे-
तुझे सिख समझकर!!

दोस्त कहता है-
भाई दाढ़ी मत कटवाना-
वरना लोग मार डालेंगे-
तुझे हिंदु समझकर!!

मैं पूछता हूँ कि-
क्या दाढ़ी ही करेगी-
मेरी पहचान का फैसला-
यहाँ कोई नही है-
जो मुझे बचायेगा एक इन्सान समझकर !!

एक पथिक कि अभिलाषा

तेरे प्यार कि छाँव मे कुछ वक्त गुजर जाने दे-
टूटे हुये ख्वाबों कि तकदीर संवार जाने दे-
अहसान इतना मुझ पे कर दे तू मेरे हमदम-
जीवन के अंधेरों को कुछ देर निखर जाने दे !!

मैं तो एक पथिक हूँ कहीँ दूर निकल जाऊंगी-
होते ही शाम कहीँ अंधेरों मे जल जाऊंगी-
कुछ देर लगा रहने दे सहाने से ओर सर को -
पलकों मे आये हुये अश्कों को बिखर जाने दे!!

फिर सुबह नसीब होगी कहॉ किस मुकाम पर-
कुछ खबर नही अँधेरे ले जाएँ किस अंजाम पर-
आज तेरे पहलू मे दो घड़ी का साथ है-
आज हर जख्म को सीने पर उतर जाने दे!!

बुझाते हुये शोलों को दामन से हवा दे दे-
फिर गुजरे ज़माने को एक बार सदा दे दे-
भटक जाऊं ना किसी हसीन याद कि गली-
बस आज चांद लम्हों के लिए वक्त ठहर जाने दे!!

सच

हर हंसी के पीछे जहाँ कि-
ढेरों खुशियाँ नहीं होती!
हर मुस्कराहट व्यक्ति कि-
प्रसन्नता नही होती!!
बल्कि बहुत सी हंसी के पीछे-
छिपे होते हैं ढेरों गम!
बहुत सी मुस्कुराहटों मे-
होता है उदासियों का चमन!!

अछूत

देश हेतु मरते जो है-
हिंदु जाती के सच्चे सपूत!
हां! हम स्वार्थी मानव-
उन्हें समखाते नीच अछूत!!
तब तक होगा नहीं हमारे-
बंधु अछूतों का उद्धार!
जब तक मैल विकार हटाकर-
नहीं करेंगें उनसे प्यार!!
तब तक मन मे बसा रहेगा-
छुआचुत का तुच्छ विचार!
एकसूत्र जब तक सबका-
नहीं गुन्थेगा निर्मल हार!!
जन उन्नति कि आशा करना-
तब तक जग मे है निर्मूल!
बंधु बंधु से करे घृणा-
देखो कैसी है ये भूल!
मिलो उन्हें सब गले लगाकर-
करो उन्हें तुम दिल से प्यार!
देश उन्नति जो आप चाहते-
छोरो ऐसा दुर्व्यवहार!!

दादाजी द्वारा सन 1936 मे रचयित
(स्वर्गीय श्री ललिता प्रसाद उनियाल 'ललाम' , व्याख्याता डी ए व कालेज लाहौर)

जुदायी

उन आंसुओं का बोझ पलकें भी ना उठा पाएँगी -

मेरी यादों से घिरे रहोगे तुम-

वो बातें बहुत रुलायेंगी-

जब ये जिंदगी मुझे तुमसे दूर लेकर जायेगी!

गिले बहुत से होंगे तुमरे दिल मे-

पर जुबान बयाँ ना कर पायेगी-

मेरा जो हाल होता है तुम्हारे जाने पर-

हालत वो तब समझ मे आएगी-

जब ये जिंदगी मुझे तुमसे दूर लेकर जायेगी!!

Monday, April 23, 2007

A story report on the activities and popularity of VHP in UK and the political impact in India

VHP has been popular in UK over the last two decades. However their recent rise in popularity has been nothing short of worry for the other parties representing the Indians. The image of parties like the CONGRESS has been tarnished in the media here. The lack of representation of Congress in UK has meant that Indians have been brain washed with information that is only given by the VHP and unsubstantiated criticism of Congress party and their policies.

VHP through their affiliation with SEWA International have raised millions of pounds in the name of charity. There has been various reports on how this so called charity funds have been utilized in India from recruiting young men and training them as terrorist fighters to cause conflict between Hindus and Muslims especially in Gujarat and to promo the activities of VHP in the UK.

The VHP(UK) has also organized events in UK in support of the Indian VHP’s agenda, including the 1989 Virat Hindu Sammelan in Milton Keynes, which included demanding that a Ram temple be built on the site of the Babri Masjid in Ayodhya, Uttar Pradesh.

SEWA Internation UK (SI). The HSS’s fundraising wing. Its main fundraising activities are for RSS-led projects in India. It is not a registered charity, but uses the charity number of the HSS UK in its fundraising campaigns. It is a limited company (company number 04482628) incorporated in July 2002. It shares the same address as the HSS. The charity work of the HSS (and the Indian RSS) took off on a large scale from 1989, the year in which the RSS celebrated the birth of the founder of the Indian RSS, K.B. Hedgewar.

National Hindus Students Forum (NHSF) -- the largest body of Hindu students in the UK. The NHSF was created with HSS support and its UK offices shared the same address as the HSS.

In Britain, the offshoots of these groups present themselves as cultural and social organizations and downplay their political agenda. But hostility to Muslims is never far away. At a VHP meeting in Southall (London) held in response to the situation in Gujarat, speakers demanded that non-Hindus should be made to leave India.

As in India, the Hindutva movement in Britain operates through a number of linked organizations, each presenting a different face for different purposes. The Hindu Swayamsevak Sangh (HSS), which is a registered charity, describes itself as a cultural organizations ‘right at the core of being British and Hindu’. Although they claim HSS has a ‘distinct identity in the UK’ from its Indian equivalent, the RSS.

The support for groups like HSS and VHP in UK rest a mixture of elements. For many economically successful Hindu, particularly enterpreneurs from East African Asian merchant communities, Hindu chauvinism aims at dissociation from less well-off Pakistani and Bangladesh communities which are seen as giving Asians a bad name. This snobbery feeds into wider fears of Islam as fundamentalist religion and is supported by the idea that Muslims have historically been ‘invaders’ of the Hindu homeland. The VHP has also been successful in mobilizing around anti-deformation issues. Another factor is the strong Hindu tradition of contributing ‘service’ to the welfare of one’s community. As Hindu nationalist groups are often the only voluntary sector groups doing welfare and educational work in the name of Hinduism, they attract support, in spite of the fact that their ideology is a distortion of the Hindu faith system.

Not only do we need to take more responsibility for the tacit support we give to people who claim to speak on behalf of a particular faith, we also need to develop strategies to give young people a grater sense of empowerment, to provide alternatives to the easy and simplistic sense of belonging offered by religious gangs and fanatics like the VHP.

It is high time that the Congress party recognize this and provide alternatives and make urgent changes and put in mechanism whereby policy is represented in the UK.

The congress party must build up a network of representatives in the UK and perhaps in the USA solely for the purpose of promoting the Congress party views and policies. VHP has committee in nearly all major cities in the UK. Similarly the Congress party too should have such groups, all working as volunteers thus keeping the cost of running such network to bare minimum. This would promote and enhance the image of Congress though out the UK. High profile Congress party members should visit these organizations lobbying and supporting the Congress party.