Sunday, August 31, 2008

जज्बात




अपने जज्बात को,
नाहक ही सजा देती हूँ...

होते ही शाम,
चरागों को बुझा देती हूँ...



जब राहत का,
मिलता ना बहाना कोई...

लिखती हूँ हथेली पे नाम तेरा,
लिख के मिटा देती हूँ......................

16 comments:

devlal thakur देवलाल ठाकुर said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति कविता के माध्यम से की है आपने , आपके ब्लॉग को पढ़कर,एवं दांडी मार्च के फोटो ,हम सभी युवाओ को कांग्रेस की रीति निति को समझने एवं शोषण के खिलाफ संघर्ष करने हेतु प्रेरक का कार्य करेगी ...पुन:श्च ब्लॉग लेखन के लिए बधाई

Anonymous said...

really cute lines

Unknown said...

BEAUTIFULL EXPRESSION!!!!!!!!!1

Anonymous said...

Bahut Sundar likha aapne..

Shivjeet Yaduvansi "shivi" said...

bahut achhi rachana hai...

Nikhil Roshan said...

Awesome...

Manisha said...

Beautiful lines...jitna kaha jaye utna kam hai aapne kam shabdo mebahut kah diya

Priyanka Vaishnav said...

Yun luga jese dil k saare jajbaat blog pe ubhar aaye he... :) lovely lines...

VEDANT said...

it's really good

AKSHAY THORAT said...

wha kay bat hai yar! but itna gam kis bat ka ha... cool

Pravin Dubey said...

बहुत सुन्दर...

prabhakar said...

बचपन में कुछ इसी तरह का शेर सुना था
********
अपने जज्बात को हम यूँ भी सजा देते है,
नाम लिखते है तेरा और लिख के मिटा देते हैं.
********
to me you are a right person, at right time in wrong political party.

Best of luck

amrendra "amar" said...

बहुत खूबसूरती से अपने भावो को उकेरा है .......बधाई*****

ज्योतिषाचार्य ललित मोहन कगड़ियाल,, said...

शाम होते ही चिरागों को बुझा देता हूँ
मेरा दिल ही काफी है तेरी याद में जलने के लिए.

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत ही संवेदनशील रचना,आभार.

Anonymous said...

aapka vakai kya kahna...bhot pyari kavita hai...