चाहते है तुम्हें , यह कहना है मुश्किल,
पर कहे बिना भी, अब रहना है मुश्किल-
न जाने कैसे कटी, जिंदगी अब तक,
तुम बिन अब तो, एक पल रहना है मुश्किल-
सोचा न था, कि चाहेंगे किसी कों इस हद तक-
अब चाहा है तुम्हें, तो इजहार करना है मुश्किल-
सोचते है इस बार, तुम्हें देखेंगे जी भर,
पर तुम्हारी नजरों से, नजरें मिलाना है मुश्किल-
चाहते है तुम्हारे दामन मे, सिमट रहे उम्रभर,
पर तुम्हारे नजदीक, जाना है मुश्किल ॥
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4 comments:
आपकी इस पोस्ट के मध्यम से अपने एक दुःख को व्यक्त करना चाहता हूँ.
कुछ bloggers की comment moderation की policy से परेशान हूँ. अब कल ही श्री क्रिशन लाल 'क्रिशन' जी की कविता नुमा पोस्ट "अब नया हम गीत लिखेंगे" पर अपनी टिप्पणी दी थी. पर उन्होंने उसे पोस्ट पर जाने लायक नहीं समझा. आप ही देखिये, क्या कुछा ग़लत कहा था मैंने:
"कोई पन्द्रह वर्ष पूर्व मेरे दस वर्षीय भतीजे महोदय को अचानक कविता लिखने का शौक़ चर्राया था. आपकी कविता पड़कर बरबस ही उन कविताओं की याद आ गई. आप भी थोड़ा और प्रयास करें तो उस स्तर को छू सकते हैं."
हाँ महक जी की प्रशंसा और समीर लाल जी के व्यंग्य को सधन्यवाद प्रकाशित किया है. मैं बड़ा क्षुब्ध हूँ इस घटना से.
बढ़िया प्रयास!!
गहराई से सोचना अपने आप में एक कला है. और आपकी चाहत में जो गहराई है उसे पढ़कर बस यही कामना करता हूँ कि आपकी चाहत हमेशा ऐसे ही बनी रहे.
शुभ कामनाएं! आमीन!
I really love to read your poems and articles. They have very deep meanings.
Keep it up!!
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