Sunday, March 2, 2008

स्टैण्डर्ड

आज बुढ़िया का निश्चेष्ट, शांत, पार्थिव शरीर भूमि पर लेता था। पडोसियों ने खूब सेवा सुश्रूषा की। बेचारी बुढ़िया! अपनी इकलौती संतान रवि को पुकारते पुकारते चल बसी। सब काना फूसी करने लगे- "बेचारी बुढ़िया! जिसने जीवन भर दुःख के सिवा कुछ नहीं देखा। बड़ी मुश्किल से उसने रवि को पला पोसा, पढाया- लिखाया, बड़ा आदमी बनाया और अंत काल तक भी अपने जिगर के टुकडे से मिलने को तड़पतीरही।"

अफसर रवि अंत काल तक न आया। दाह संस्कार की सामग्री जुटाई गई। पंडितजी ने संस्कार कर्म सम्पन्न किएआख़िर रवि का इंतजार कब तक किया जाता? अर्थी उठाने ही वाली थी की बाहर हार्न की आवाज सुनी दी। सभी चौकन्ने हो गए। पडौसियों के दिलों को रहत मिली। सभी की दृष्टि द्वार पर जा लगी। उन्होंने देखा की रवि चार पाँच आदमियों के साथ खटाखट चला आ रहा था। उनमे से एक दो कैमरा मैन और विडियो फ़िल्म मेकर थे।

आते ही रवि ने भरे शब्दों मी पंडितजी से कहा- "रुकिए, पंडितजी! इतनी जल्दी भी क्या है? आख़िर मेरी माँ थी। मैं बेटा ठहरा। मेरे स्टैण्डर्ड का कुछ तो ख़याल रखा होता। " रवि की यह बात सुनकर सब आवाक रह गए। आगे बढ़ कर जैसे ही रवि ने अपनी माँ की अर्थी को प्रणाम किया, निशब्द वातावरण मेँ कैमरामैन का "यश! रेडी!" शब्द मुखरित हो उठा, साथ ही प्रकाश की एक चमक दमक उठी।
विडियो फ़िल्म बन रही थी। प्रकाश बारी बारी से सबके चहरों को आलोकित करता हुआ आगे बढ़ रहा था। अपना चहरा छिप न जाए इसी वजह से सब आगे उचक रहे थे।

10 comments:

kamlesh madaan said...

आपको पढना अच्छा लगता है, आप बहुत अच्छा और मन से लिखती हैं लेकिन आपसे एक शिकायत है कि आपके प्रोफ़ाइल और ब्लॉग का कंटेंट(सामग्री) अंग्रेजी में है अगर आप उसे हिंदी में कर दें तो आपका ब्लॉग और आपके लेखन को अमर कर देगा क्योंकि हम सभी चिट्ठाकारों का ये मानना है आपका(सभी चिट्ठाकारों) लिखा आपकी आने वाली पीढियां भी पढेंगीं तो क्यों न इसे विरासत के स्वरूप इसमें काम किया जाये!

Rudraksh Prayog said...

विद्रूप पर करारा प्रहार । धन्यवाद ।

सुजाता said...
This comment has been removed by the author.
सुजाता said...

पिछली टिप्पणी आपके ई मेल मे पहुँच गयी होगी , सो हटा दी है ।

अजय कुमार झा said...

aaj pehlee baar hee apko padha aur behad prabhaavit huaa. dhanyavaad.

Sanjeet Tripathi said...

यह लिखा दर्शाता है कि आपके राजनैतिक व्यक्तित्व में अभी संवेदनाएं बाकी हैं!!
बचाएं रखें इन संवेदनाओं को

Sanjeet Tripathi said...

आपने पिछला लेख छत्तीसगढ़ के ट्रायबल वाला क्यों डिलिट कर दिया?
क्या कमेंट्स के कारण?

Remmish Gupta said...

मैं नि:शब्द हो गया हूँ! इतना बढ़िया संवेदनात्मक लेख... सचमुच, ये दुनिया कि चकाचौंध, रहवासियों को बेदर्द और असंवेदनशील बना देती है.

Pinaakpaani said...

Chayanika ji churu mein aapko sunane ka mauka mila,achha bolti hain.agar date of birth,time aur place(chhapar?)uplabdh karva saken to political future ke baare mein jaan sakti hain.
surendra.dr@gmail.com
pinakpaani@yahoo.co.in

Atul said...

Bahut hi touching article hai.
Yeh swayam ko modern kehla ka proud feel karne wale aaj ke aadmi ki maansikta ko darshata hai.

Aapke jaise samvedanatmak lekhak hi aaj ke samaj mein parivartan laa sakte hai mam.
Aage bhi likhte rahiyega aisa hi.