"रघुपति राघव राजाराम
, पतित पावन सीताराम" गाने की आवाज जैसे ही कानों मे पड़ी
, मैं जूरी से बोली, "लो डियर बज गए पांच!
चल उठ,
तैयार हो कर छ: बजे प्रार्थना स्थल पर पहुँचना है।
तैयार हो तम्बू मेँ सामान पैक करते समय विचारों की लय मे कब बह निकली पता ही नहीं चला........"दांडी यात्रा की ७५ वी वर्षगांठ पर उसी समय, उसी स्थान पर ७८ यात्रियों के साथ पुन: दांडी यात्रा आयोजित की जा रही है। ७८ यात्रियों के अलावा भी सेवा दल, स्वयं
सेवी संस्थाओं से जुड़े लोग,
बहुत से मिडिया इत्यादि लोगों का झुंड
का झुंड चल रहा है। शहरों व गावों मे लोगों द्वारा स्वागत देखते ही बनता है।
पर इस दांडी यात्रा
और गाँधी की दांडी यात्रा मेँ कुछ तो फर्क है? है
ना,
उस समय हर व्यक्ति एक ही उद्देश्य से चल रहा था,
ब्रिटिश साम्राज्य की तानाशाही का अंत।
परन्तु, यहाँ कोई इस एतिहासिक यात्रा का हिस्सा बनाना चाहता है,
तो कोई एडवंचर करना चाहता है। कुछ तो ऐसे भी जो किसी राजनीतिक कारण से या
सरकारी ड्यूटी की वजह से चल रहे है। ................
"क्या सोच रही है? प्रार्थना की
लाइन लग गई है।चल, प्रार्थना नहीं करवानी है तुझे?"
जूरी की आवाज ने मेरी सोच की लय कों भंग कर दिया।
प्रार्थना........ और फ़िर से पदयात्रा शुरू..... । रास्ते मे चलते हुए एक न्यूज चैनल के रिपोर्टर मुलाक़ात हो गई। बातचीत मेँ सुबह सुबह हमें रघुपति राघव के आलार्म से जगाने वाले शख्स की चर्चा चल पड़ी। "सच मेँ कितने मन से सारा दिन लोगों की सेवा करता है। " मेरी बात सुनकर ने उस व्यक्ति से मिलने और उसका इंटरव्यू लेने की इच्छा जाहिर की। मुझे भी लगा कि उस व्यक्ति कि निस्वार्थ सेवा सब के लिए प्रेरणा बन सकती है।
लैंच ब्रेक के स्थान पर पहुँचने के बाद मैं उस व्यक्ति कों ढुंढने निकल पड़ी। हर कोई भरी दोपहरी मेँ सुस्ता कर अपनी थकान मिटा रहा था। तभी वो मुझे किसी के पाँव दबाता दिखाई पड़ा। मैं उअसकी और बदी।
"भइया जी, चलो टी वी वाले आपका इंटरव्यू लेना चाहते है। " मैंने उसे कहा। वो चुपचाप मेरे साथ चल पड़ा। "भाई रिपोर्टर महोदय कहाँ है? " न्यूज चैनल कि वैन पर पहुँच कर मैंने ड्राइवर से पूछा। " यंहीं पास मेँ ही गएँ है, आते ही होंगे" ड्राइवर ने जवाब दिया। "अब इसे लायी हूँ तो बेचारे का इंटरव्यू करवा ही दिया जाए।" यह सोचकर मैं वहां खड़ी हो गई। थोड़ा वक्त बिताने पर वो मुझसे बोला, "मैडम मैं चलता हूँ, मेरा वक्त बरबाद हो रहा है।" मुझे बड़ा गुस्सा आया। अरे भई, यहाँ सुबह से लोगों मेँ टी वी चैनल मेँ शकल दिखाने कि होड़ लगी रहती है। इसको चला कर मौका दिला रही हूँ , वो भी भरी दोपहरी मी इसके साथ खडे रहकर, तो इसको कदर ही नहीं है। मैंने पूछ ही लिया,
"क्या भैया ऐसा कोनसा महत्वपूर्ण काम चूक रहा है?" वो बोला, " मैडम इतनी देर मेँ कई लोगों कि सेवा कर लूँगा। आप इन्हें वहीं ले आना। मैं थके मांदे लोगों के पैर भी दबाता रहूंगा और इन्हें जो पूछना होगा वो पूछ लेंगें। "
जैसे ही वो चलने कों पलता, मैंने उसे टोका, "क्या नाम है आपका?" वो ठिठक कर धीरे से बोला 'राजू'। "क्या करते हो?" मेरा अगला सवाल था। "मैडम, बेटे के साथ गांवों मेँ घूमकर प्रेशर कुकर ठीक करने का काम करता हूँ। किसी तरह परिवार पाल लेते है।" उसका जवाब था। अब मेरे आश्चर्य कि सीमा नहीं थी। मुश्किल से रोटी रोजी का जुगाड़ कराने वाला यह व्यक्ति यहाँ दांडी यात्रा मेँ किस उदेश्य से है? इसे पार्टी मेँ पड़ नहीं चाहिए, चुनाव लड़ने कि तो बेचारा कल्पना भी नहीं कर सकता, ड्यूटी किसी ने लगाई नहीं और अडवंचरस तो इश्वर ने इसकी जिंदगी वैसे ही बना रखी है। फ़िर किस लिए है यहाँ? और फ़िर ये सेवा का जूनून!! क्या वजह हो सकती? "रोटी रोजी छोड़ कर दांडी मेँ क्या कर रहे हो?" मैंने उससे पूछा। " मैडम, मैने सुना था कि देश की आजादी के लिए गांधी जी ने दांडी यात्रा की थी। आज फ़िर आप लोग उसी आजादी कों बचाने और मजबूत करने कों चल रहे है। मैं उस यात्रा के समय तो नहीं था, पर आज तो हूँ। मैंने सोचा जब आप सब इस महान काम के लिए घर बार छोड़ कर चल रहे है, तो आप लोगों कि सेवा करके थोड़ा पुन्य मैं भी कम लूँ।" सपाट और सरल शब्दों मेँ जवाब दे कर 'रघुपति - राघव' गातेफ़िर निकल हुआ पड़ा। हम मेँ से ही किसी 'महान दांडी यात्री' सेवा के लिए........ ।