Saturday, December 8, 2012

नौकर की कमीज, विनोद कुमार शुक्ल

"अर्थशास्त्र के शिक्षक ने कुछ दिनों के बाद उनको समझाया होगा, "तुम्हारी पत्नी मर गयी. इससे तुम्हें बहुत नुकसान हुआ. स्कूल में मास्टरनी थी, दो सौ रुपये महीना कमाती थी. घर का खाना, दूसरे काम, बच्चों की देख-रेख, कपड़े धोना, झाडू लगाना बहुत से काम करती थी. कोई काम कराने वाली औरत होती तो इतने काम का कम-से-कम सौ रूपये लेती और रद्दी काम करती. इमानदारी से तुम्हारी गृहस्थी की देख-रेख नहीं करती. गन्दी होती,
उज्जड होती, चोर होती. तुम्हारी पत्नी तुम्हारे साथ बिस्तर पर सोती थी. अब तुम्हारे बिस्तर पर कोई नहीं सोयेगा. इसके लिए बाज़ार में तुम कितने भी सस्ते-से काम चलाओ, आधे घंटे के कम-से-कम दो रुपये लग जायेंगे.वह बिस्तर कैसा होगा, इसका अंदाज़ लगा लों. बदनामी का डर रहेगा. नौकरी जाने का भी डर रहेगा.- अब तुम हिसाब करके बतलाओ, एक महीने में तुम्हें कुल कितने रुपये का नुकसान हुआ?"

इसका परिणाम यह हुआ कि उन्होंने दूसरी शादी कर ली."

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