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Friday, January 4, 2013

आखिर क्यूँ?


28 दिसंबर कांग्रेस स्थापना दिवस पर रामलीला मैदान, जयपुर में "संकल्प रैली एवं विशाल जन सभा' का आयोजन किया गया, कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न हुआ।परन्तु दिन भर के व्यस्तता के बाद जब टी वी खोल तो बड़ी दुखद खबर का सामना हुआ- दिल्ली गैंग रेप पीड़ित लड़की की हालत बेहद नाजुक, कई अंगों ने काम करना बंद किया :-( दिल से एक ही प्रार्थना निकली कि ईश्वर उसे शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान करे तथा एक सामान्य जीवन जीने का एक और मौका दे। परन्तु आख़िरकार जीवन और मृत्यु के बीच का संघर्ष समाप्त हुआ, आखिरकार जिंदगी हारी। पीडिता ने देर रात 29 दिसम्बर को अंतिम साँस ली। शोक, क्षोभ, पीड़ा, क्रोध ये सभी भाव एक साथ मन में जाग उठे :( दिल से एक ही प्रार्थना निकली - "हे भगवान इस दुनियां में तो उसे दर्द, पीड़ा और यातना मिली, परन्तु उसे आप अपने आपर स्नेह से सकून व शांति प्रदान करना। उसके प्रियजनों को इस दुःख की घडी में संबल देना।" आज ये सोच के और तकलीफ होती है की 2000 से 2005 तक पी एच डी के कार्य के लिए तीन मूर्ति व् राष्ट्रिय अभिलेखागार जाने हेतु, NSUI व युवा कांग्रेस में राष्ट्रिय पदाधिकारी रहते हुए कार्यालय जाने हेतु दिल्ली की बसों की सवारी मैंने भी बहुत की थी, रात में इनमे यात्रा तब भी सुरक्षित नहीं थी आज भी नहीं है। परन्तु मै शायद भाग्यशाली थी।
इस घटना ने सबको हिल कर रख दिया नए कठोर कानून की मांग जोर शोर से उठाई जा रही है। परन्तु मेरी व्यक्तिगत रे तो यह कि सिर्फ नया कानुन बना देने से समस्या का समाधान नहीं होगा, कानुन लागु भी होना चाहिए। अपराध की सजा तुरन्त मिलनी चाहिए। महिलाओं के प्रति समाज में पुरुषों की सोच बदलनी चाहिए, नेता और पुलिस इसी समाज में से ही आते है। परन्तु अफसोस तब होता है जब मै पुरुषों की सोच बदलने की बात फेसबुक पर करती हूँ बहुत लोग इस बात को सिरे से नकार देते है कि किसी बदलाव की आवश्यकता भी है, ऐसे में बदलाव बहुत दूर नजर आता है। आखिर 100 करोड़ से अधिक की आबादी में कुछ हजार हाथों में कैंडल से सामाजिक बदलाव नहीं आएगा, बदलाव के लिए करोड़ों हाथों के उठाने की जरुरत पड़ेगी। आखिर सबकुछ सिखाया जा सकता है, परन्तु दुसरे की भावनाओं की कद्र करना किसी को कैसे सिखाया जा सकता है? आखिर ये तो महसूस करने की बात है, ना कि सिखाने की।  

अब देखिये मध्य प्रदेश के एक मंत्री का बयान आया " लक्ष्मण रेखा न लांघे, वरना हरण तो  ही।" मतलब सीता हरण में कसूर सीता का था रावण का नहीं? वाह री दोहरी मानसिकता और दोहरे मापदंड! जिस धर्म में अर्धनारीश्वर की कल्पना हो, उस समाज में लक्ष्मण रेखा सिर्फ महिलाओं के लिए ही क्यूँ? क्या पुरुषों के लिए कोई लक्ष्मण रेखा नहीं होनी चाहिए? भगवान आपसे से एक प्रार्थना है, इस देश में जितने भी पुरुष इस तरह की दोहरी मानसिकता वाले है उन्हें अगले जन्म में महिला बना के पैदा करें और उन्हें इस जन्म की सोच और कर्म याद रहें। आपके लिए भी ये देखना रोचक होगा की उनकी सोच वही रहती है या बदलती है :) अफ़सोस आज हर कोई महिलाओं की मर्यादा, महिमा, उनको पूजे जाने के बारे में बात कर रहा है। परन्तु कोई भी उनकी आजादी, अधिकार और बराबरी की चर्चा तक नहीं करता। आखिर क्यूँ?

Wednesday, December 26, 2012

दिल्ली रेप केस- एक और विवाद

कांस्टेबल की म्रत्यु में एक और विवाद जुड़ गया है। कल जहाँ एक चश्मदीद ने ये बताया की उसने और एक लड़की ने कांस्टेबल को संभाला था, जब वो बेहोश हो के गिरे थे, उसने एम्बुलेंस को भी कॉल किया था। एम्बुलेंस के ना आने पर उन्हें पुलिस की गाडी से ही हॉस्पिटल ले जाया गया। आज आर ऍम एल हॉस्पिटल की डोक्टर ने बयान दिया की कांस्टेबल सुभाष तोमर को कोई अन्दुरुनी गंभीर छोटे नहीं थी। उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई। फिरर गृह सचिव की ये बयान आया की कमिशनर ने गलत जाकारी दी। आखिर ये सब क्या हो रहा है??? क्या कमिशनर साहेब अपने ही कास्टेबल की मौत पर राजनीति करके अपनी गलतियों को ढकने की कोशिशि तो नहीं कर रहे??? अगर ये सच है तो घोर कलयुग है, जब अपने ही अधिनस्थ कार्य करने वाले की आपको फ़िक्र नहीं (होती तो दिल के मरीज की ड्युटी आप फिल्ड में नहीं डेस्क पर लगते), तो आम जनता आपसे क्या अपेक्षा करे????

Monday, December 24, 2012

बहस

आज कल रेप मामलो पे होने वाली बहस में बहुत से लोग लड़कियों के पहनावे पर, देर रात घुमाने पर सवाल खड़ा करते है। मेरे उनसे सवाल है 1. छोटी बच्चियों, विवाहित महिलाओं, देहात में होने वाले रेप की घटनाओं के संदर्भ में वो क्या कहेंगे? 2. महिला कोई भी अंग हल्का सा प्रदर्शित हो जाये तो पुरषों की क्यूँ लार टपकने लगाती है? आपको कोई कैसे रेप के लिए निमंत्रित कर सकता है? self control भी कोई चीज होंती है। आखिर गन्दगी सोच और निगाह में है तभी तो? उदहारण के लिए खजुराहो की मूर्तियों में कुछ को नंगापन दिखता है, तो कुछ को कला- जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि वैसी। यदि कम  कपडे पहनने से बलात्कार होते है तो हमारे आदिवासी क्षेत्रों मे, अफ्रीका में, यूरोप और अमेरिका में हर लड़की से बलात्कार होना चाहिए तथा इस्लामिक देशों और हमारे देहात जहाँ ओरते घर की चारदीवारी और परदे में रहती है एक भी बलात्कार नहीं होना चाहिए। बलात्कार कपड़ों का मुद्दा नहीं है, ये तो किसी पुरुष की विकृत मानसिकता का परिणाम होता है। 3. लड़कियाँ क्यों खुले आम अपने कार्य से उतनी ही निश्चिन्तता से घूम सकती है जीतनी की पुरुष घुमाते है? आखिर खतरा किस से है?

और तो और बहुत से लोग आज कल फेसबुक और ट्विटर पर ये भी कह रहे है पुलिस नाकारा हो चुकी है, अपनी रक्षा खुद करनी होगी। ये क्या बात हुयी??? हमारे दिए हुए टेक्स से पुलिस को तनख्वा मिलाती है, यदि ये हमारी सुरक्षा नहीं कर सकते, और हमें खुद ही अपनी सुरक्षा करनी है, तो हटाओ इन्हें नौकरी से और बंद कर दो सब थाने।




Sunday, December 23, 2012

नार्थ ब्लाक से इंडिया गेट

अगर आप ने कल नार्थ ब्लाक से इंडिया गेट की बीच समय गुजर होता तो आप देख पाते कि मात्र 16 से 22 साल उम्र के (90% इसी उम्र के युवा दिखाई पड़े) छात्र छात्राएं- "We want justice, hang the rapist", "दिल्ली पुलिस एक काम काटो, चूड़ियाँ पहन के डांस करो", "रेप करने वालों का, काट डालो सालों का" इत्यादि नारे लगा रहे थे। ये युवा कभी रोष से भरे नारे लगा रहे थे, तो राष्ट्रीयता की भावना प्रदर्शित करते हुए राष्ट्रिय ध्वज फहरा रहे थे, तो भावुकता से भरे राष्ट्र गान गा रहे थे। टी वी कैमरों की स्थान पर खुद की निगाहों से देखने पे आन्दोलन को व्यक्यिगत तौर पर समझने का अवसर मिलाता है, जो बेहद अद्भुत था। मैंने अपने कैमरे में द्रश्यों को कैद भी किया।
आज फिर जब इन्ही बच्चों को पुलिस से झड़प करते देखा तो ख्याल आया कि जब बच्चा अपनी किसी वाजिब मांग को मातापिता के सम्मुख रखता है और मातापिता द्वारा उपेक्षा किये जाने पर हल्ला मचाता है, फिर यदि मातापिता द्वारा बिना वजह दण्डित होता है तो गुस्से में कभी कभी तोड़ फोड़ करके भी अपनी और ध्यान आकृषित करने का प्रयास करता है। क्या छात्रो के इस आन्दोलन में भी यही मनोविज्ञान नहीं दिखता। मेरी समझ यही कहती है कि सरकार को समझाना होगा ये गुस्से भरे युवा आश्वासन नहीं कार्यवाही चाहते है और यदि इस आंदोलन को सख्ती से दबाया गया तो इसके दूरगामी परिणाम राष्ट्रिय हित में नहीं होंगे।

इस परिस्तिथि में महिला तथा इस देश का नागरिक होने के नाते मेरी सरकार से आज यही अपेक्षा है- 1. पुलिस रिफोर्म हो। 2. विशेष संसद सत्र बुला के रेप केस में कड़े कानून बने, जिसमे फांसी तथा आजीवन कारावास का प्रावधान हो। इस अपराध में कोई बेल न मिले, न किसी पैरोल का प्रावधान हो। ये प्रावधान रेप के आलावा तेज़ाब फेंक कर लड़कियों को जिन्दा लाश बनाने वालों के विरुद्ध भी होना चाहिए।3. देश के सभी हिस्सों में रेप केस की सुनवाई हेतु फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बने तथा सुनवाई की समय सीमा तय हो। 4. कानुन तथा पुलिस का भय सिर्फ दिल्ली में नहीं बल्कि देश के दूर दराज क्षेत्रों में भी हो।