Friday, January 25, 2008

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

कामना

नहीं चाहती राज्य जगत का,
न ही स्वर्ग का सुख भोग।

नहीं मोक्ष की मुझे कामना,
और न ही कीर्ति का है मोह॥

यही चाह है जब तक जिऊँ,
कहता है मेरा यह मन।

मातृ भूमि की सेवा मेँ ही,
सदा बिताऊँ निज जीवन॥

(यह किविता १९९४ मे लिखी गयी)

Wednesday, January 9, 2008

कुंवारेपन के फायदे :)

वर्त्तमान समय मेँ कुंवारे रहने वालो की संख्यां दिनों दिन बढ़ती जा रही है। युवक हो युवतियां, सभी अपने अकेलेपन मेँ खुश लगते है। शायद अकेले मेँ उन्हें अपने करियर के विकास की असीम संभावनाएं नजर आती है।

वैसे कुवंरेपन के भी अपने फायदे है, जो दुकले रहने मेँ नहीं मिल सकते। घर और बाहर, आप अपनी मरजी के मालिक है। अपने बिस्तर के दायीं और सोंयें या बायीं और, जल्दी सोयें या देर से, देर से सोके उठें या जल्दी, अपनी गाड़ी धीरे चलायें या तेज, खाना ताजा बनायें या दोनों समय का पकाकर फ्रिज मेँ रख दें, किसी से टेलीफोन पर लंबी बात करें या छोटी, इसकी पूरी आजादी रहती है।

अगर आप लड़की है तो कई और भी कई फायदे है जैसे- आपको शेंविग क्रीम से भरे झाग का मग नहीं धोना पड़ता, न ही इधर उधर बिखरे मर्दाने कपडे और गिला तौलिया उठाना पड़ता है, टेलीविजन का रिमोट आपके हाथों मेँ रहता है, याने जो चाहे कार्यक्रम देखें किसी को कोई एतराज नहीं, दूसरा कोई है ही नहीं:)

इसीलिए मेरे सभी कुंवारे कुवारियों के सलाह है की आप इस आजादी का भरपूर आनंद लें। अपने व्यक्तित्व को मनमाफिक संवारें, अपने करियर के लिए जीतनी चाहे दौड़ भाग करें, अपनी हौबी को आगे बढाये, आखिर ये सब आपकी अपनी मुट्ठी मेँ जो है।

अकेले आदमी को ब्रेक की बहुत जरुरत होती है। आपको भी समय समय पर छोटा या लम्बा ब्रेक लेना चाहिऐ। बजट के मुताबिक अपने शहर मेँ या पास के शहर या कभी विदेश भ्रमण पर निकल जाईये, आख़िर रोकने वाला कोई है जो नहीं।

इसके साथ ही अपने दिमाग को हमेशा चौकन्ना रखें। उत्त्साह और आशा को जीवन का मूलमंत्र बनायें। कभी कभी ऐसे लोगों को भी झेलना पड़ता है , जो मनमाफिक नहीं होते, उन्हें भी झेले। क्या पता इन भले बुरे लोगों मेँ ही कभी कोई ऐसा मिल जाये जो हमेशा कुंवारे रहने की जिद्द तुड़वाकर आपका जीवनसाथी बन जाये ....... ;)

Tuesday, January 8, 2008

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

यह उन्नत आकाश
हमारे यश की व्यापक परिधि बने।
तेज हमारा देवों से भी
उत्तम हो अत्युत्तम हो॥(ऋग्वेद ७\३२)