Friday, October 2, 2020

उन पैरों के निशां अभी बाकी हैं


 "रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम" गाने की आवाज जैसे ही कानों मे पड़ी, मैं जूरी से बोली, "लो डियर बज गए पांच! चल उठ, तैयार हो कर छ: बजे प्रार्थना स्थल पर पहुँचना है।

                      तैयार हो तम्बू में सामान पैक करते समय विचारों की लय में कब बह निकली पता ही नहीं चला...। दांडी यात्रा की 75 वीं वर्षगांठ पर उसी समय, उसी स्थान पर 78 यात्रियों के साथ पुन: दांडी यात्रा आयोजित की जा रही है। 78 यात्रियों के अलावा भी सेवा दल, स्वयं सेवी संस्थाओं से जुड़े लोग, बहुत से मीडिया इत्यादि लोगों का झुंड का झुंड चल रहा है। शहरों व गावों में लोगों द्वारा स्वागत देखते ही बनता है।

                      पर इस दांडी यात्रा और गाँधी की दांडी यात्रा में कुछ तो फर्क है? है न, उस समय हर व्यक्ति एक ही उद्देश्य से चल रहा था, ब्रिटिश साम्राज्य की तानाशाही का अंत। परन्तु, यहाँ कोई इस ऐतिहासिक यात्रा का हिस्सा बनाना चाहता है, तो कोई एडवंचर करना चाहता है। कुछ तो ऐसे भी जो किसी राजनीतिक कारण से या सरकारी ड्यूटी की वजह से चल रहे हैं...।

"क्या सोच रही है? प्रार्थना की लाइन लग गई है। चल, प्रार्थना नहीं करवानी है तुझे?" जूरी की आवाज ने मेरी सोच की लय को भंग कर दिया।

                        प्रार्थना...और फ़िर से पदयात्रा शुरू...। रास्ते में चलते हुए एक न्यूज चैनल के रिपोर्टर मुलाक़ात हो गई। बातचीत में सुबह-सुबह हमें रघुपति राघव के आलार्म से जगाने वाले शख्स की चर्चा चल पड़ी। "सच में कितने मन से सारा दिन लोगों की सेवा करता है।" मेरी बात सुनकर रिपोर्टर ने उस व्यक्ति से मिलने और उसका इंटरव्यू लेने की इच्छा जाहिर की। मुझे भी लगा कि उस व्यक्ति की निस्वार्थ सेवा सब के लिए प्रेरणा बन सकती है।

                     लैंच ब्रेक के स्थान पर पहुँचने के बाद मैं उस व्यक्ति कों ढूँढने निकल पड़ी। हर कोई भरी दोपहरी में सुस्ता कर अपनी थकान मिटा रहा था। तभी वो मुझे किसी के पाँव दबाता दिखाई पड़ा। मैं उसकी ओर बढ़ी।

"भइया जी, चलो टी.वी. वाले आपका इंटरव्यू लेना चाहते है।" मैंने उसे कहा। वो चुपचाप मेरे साथ चल पड़ा। "भाई रिपोर्टर महोदय कहाँ है?" न्यूज चैनल कि वैन पर पहुँच कर मैंने ड्राइवर से पूछा। "यहीं पास में ही गए हैं, आते ही होंगे।" ड्राइवर ने जवाब दिया। "अब इसे लायी हूँ तो बेचारे का इंटरव्यू करवा ही दिया जाए।" यह सोचकर मैं वहां खड़ी हो गई। 

                      थोड़ा वक्त बिताने पर वो मुझसे बोला, "मैडम मैं चलता हूँ, मेरा वक्त बरबाद हो रहा है।" मुझे बड़ा गुस्सा आया। अरे भई, यहाँ सुबह से लोगों में टी.वी. चैनल में शक्ल दिखाने की होड़ लगी रहती है। इसको चला कर मौका दिला रही हूँ , वो भी भरी दोपहरी में इसके साथ खड़े रहकर, तो इसको कदर ही नहीं है। मैंने पूछ ही लिया, "क्या भैया ऐसा कौन-सा महत्वपूर्ण काम चूक रहा है?" वो बोला, " मैडम इतनी देर में कई लोगों की सेवा कर लूँगा। आप इन्हें वहीं ले आना। मैं थके-मांदे लोगों के पैर भी दबाता रहूंगा और इन्हें जो पूछना होगा वो पूछ लेंगें। "

                       जैसे ही वो चलने को पलटा, मैंने उसे टोका, "क्या नाम है आपका?" वो ठिठक कर धीरे से बोला ''राजू''। "क्या करते हो?" मेरा अगला सवाल था। "मैडम, बेटे के साथ गांवों में घूमकर प्रेशर कुकर ठीक करने का काम करता हूँ। किसी तरह परिवार पाल लेते हैं।" उसका जवाब था। अब मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं थी। मुश्किल से रोटी-रोजी का जुगाड़ करने वाला यह व्यक्ति यहाँ दांडी यात्रा में किस उद्देश्य से है? इसे पार्टी में पद नहीं चाहिए, चुनाव लड़ने की तो बेचारा कल्पना भी नहीं कर सकता, ड्यूटी किसी ने लगाई नहीं और अडवंचरस तो ईश्वर ने इसकी जिंदगी वैसे ही बना रखी है। फिर किसलिए है यहाँ? और फिर ये सेवा का जुनून!! क्या वजह हो सकती? "रोटी-रोजी छोड़ कर दांडी यात्रा में क्या कर रहे हो?" मैंने उससे पूछा। "मैडम, मैंने सुना था कि देश की आजादी के लिए गांधीजी ने दांडी यात्रा की थी। आज फिर आप लोग उसी आजादी को बचाने और मजबूत करने को चल रहे हैं। मैं उस यात्रा के समय तो नहीं था, पर आज तो हूँ। मैंने सोचा जब आप सब इस महान काम के लिए घर-बार छोड़ कर चल रहे हैं तो आप लोगों की सेवा करके थोड़ा पुण्य मैं भी  कमा लूँ।"

                        सपाट और सरल शब्दों में जवाब दे कर 'रघुपति - राघव' गाते फिर निकल पड़ा। हम में से ही किसी 'महान दांडी यात्री' की सेवा के लिए...।


Published at https://www.babuaa.com/news/view/16387 on 2nd October 2020

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